Wednesday, March 16, 2011

faguni bayar

मादक सा झोंका ये फागुनी बयार का !
आमंत्रण  लाया  है  बासंती प्यार का !

रतिपति के स्वागत में कोपलें हैं फूलीं ,
प्रिय के आलिंगन में वसुधा सब भूली ,
मन-वीणा में स्वर है सुमधुर झंकार का !

भ्रमरों का गुंजन है हर मन की डाल पर,
प्रेम रंग  रंजित  है  गोरी  के  गाल , पर, 
अदभुत सा उत्सव है मन की इस हार का !

पुष्प-बाण से   घायल  है  सारी  सृष्टि ,
यौवन है  मुग्ध और  चंचल  है  दृष्टि ,
कोई  अनुबंध  नहीं  प्रेम के आधार का !
आमंत्रण लाया है . . . . . . . 

1 comment:

  1. कोई अनुबंध नहीं प्रेम के आधार का !---अति-सुन्दर...

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