मादक सा झोंका ये फागुनी बयार का !
आमंत्रण लाया है बासंती प्यार का !
रतिपति के स्वागत में कोपलें हैं फूलीं ,
प्रिय के आलिंगन में वसुधा सब भूली ,
मन-वीणा में स्वर है सुमधुर झंकार का !
भ्रमरों का गुंजन है हर मन की डाल पर,
प्रेम रंग रंजित है गोरी के गाल , पर,
अदभुत सा उत्सव है मन की इस हार का !
पुष्प-बाण से घायल है सारी सृष्टि ,
यौवन है मुग्ध और चंचल है दृष्टि ,
कोई अनुबंध नहीं प्रेम के आधार का !
आमंत्रण लाया है . . . . . . .
कोई अनुबंध नहीं प्रेम के आधार का !---अति-सुन्दर...
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