Thursday, January 27, 2011

anurag ka anubandh

दृष्टि की पुकार में ,
अनुराग का अनुबन्ध ,
नेह ने रचा है ,
आकुलता का छन्द ,

सांस -सांस में बसी,
इक कस्तूरी गंध,
मदिरा सी मादक है,
वो स्मित मन्द ,

आमंत्रण देते हैं,
प्रिय के स्कन्ध,
बहने दो प्रीति को ,
यूँ ही निर्बन्ध,

यौवन है वसुधा का,
निर्मल , स्वच्छंद,
कलियों ने मुक्त-हस्त,
बाँटा मकरन्द,

नील गगन बिखराए ,
अनुपम आनन्द,
मुक्त करो मन को,
है सदियों से बन्द. 

Friday, January 14, 2011

shabd

शब्द हैं,
भावों की अनुगूँज,
जो सरल ,सहज ,
भावनाओं को ,
प्रदान करते हैं नूतन स्वरुप .

शब्द हैं,
लुटेरे ,
जो अपने अस्तित्व को
प्रकाशित करके लूट लेते हैं ,
सुख ,चैन ,नींद ,हंसी

शब्द हैं ,
बहुरुपिए,
जो अपने अनेकानेक रूपों में ,
हमारे सामने  उपस्थित हो जाते हैं
कहीं भी ,कभी भी .

शब्द हैं ,
अभिनेता ,
जो झूठ पर. सच का आवरण चढ़ाकर ,
झूठ को स्थापित करते हैं ,
सत्य को झुठलाकर. 

Wednesday, January 12, 2011

chaandanee

रंग सपनों में भरती रही चाँदनी
रात भर यूँ ही झरती रही चाँदनी.

झाँककर खिडकियों से चिढ़ाती हुई ,
घर के अन्दर बिखरती रही चाँदनी

भूख से ,प्यास से ,काम के बोझ से ,
रोज़ तिल -तिल के मरती रही चाँदनी .

aaj jab tum yaad aaye

आज जब
तुम याद आये ,
देर तक ,
बजती रहीं शहनाइयाँ

दूर तक जाकर ,
अकेली दृष्टि  मेरी ,
लौट आती ,
एक भटकी राह
मन  से है निकलती
मन को जाती ,
ग्रीष्म की इस साँझ में ,
बहने लगीं पुरवाइयां.

नेह के रंगों से ,
कितने चित्र थे
हमने सजाए ,
बावरा मन है अभी ,
उस बिम्ब को,
दृग में बसाये,
दोपहर की चिलचिलाती धूप में ,
बेकल, अलस अमराइयाँ.