Thursday, January 27, 2011

anurag ka anubandh

दृष्टि की पुकार में ,
अनुराग का अनुबन्ध ,
नेह ने रचा है ,
आकुलता का छन्द ,

सांस -सांस में बसी,
इक कस्तूरी गंध,
मदिरा सी मादक है,
वो स्मित मन्द ,

आमंत्रण देते हैं,
प्रिय के स्कन्ध,
बहने दो प्रीति को ,
यूँ ही निर्बन्ध,

यौवन है वसुधा का,
निर्मल , स्वच्छंद,
कलियों ने मुक्त-हस्त,
बाँटा मकरन्द,

नील गगन बिखराए ,
अनुपम आनन्द,
मुक्त करो मन को,
है सदियों से बन्द. 

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