urmi ki urmiyan
Sunday, March 13, 2011
ekaant
सान्ध्य का नीरव,
धुंधलका ,
और व्याकुल,
मन विरागी ,
है अभी पथ,
बहुत बाकी ,
किन्तु अन्तर है व्यथित ,
छाई उदासी
ले के तुमको,
मैं कहाँ जाऊं ,
मेरे मन क्लांत ,
आ यंहीं कुछ देर ठहरे
मुखर है एकांत .....,
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