सांझ का आँचल ढलकता ,
अनगिनत सपने सँवारे !
विरहिणी श्यामल -निशा ,
हर पल अनागत को पुकारे !
सूना -सूना सा ये पनघट ,
राह किस प्रिय की निहारे !
एक सरिता शांत बहती ,
पड़े हैं गुमसुम किनारे !
गीत कोई भी न जगता ,
सच न होते स्वप्न सारे!
तृषित रहता प्रणय-पागल ,
छवि कोई मन में उतारे !
कितने धुँधले होते दर्पण,
यदि न होते तुम हमारे !
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