urmi ki urmiyan
Wednesday, January 12, 2011
chaandanee
रंग सपनों में भरती रही चाँदनी
रात भर यूँ ही झरती रही चाँदनी.
झाँककर खिडकियों से चिढ़ाती हुई ,
घर के अन्दर बिखरती रही चाँदनी
भूख से ,प्यास से ,काम के बोझ से ,
रोज़ तिल -तिल के मरती रही चाँदनी .
1 comment:
Unknown
January 12, 2011 at 6:25 AM
nice poem.............
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nice poem.............
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