आज जब
तुम याद आये ,
देर तक ,
बजती रहीं शहनाइयाँ
दूर तक जाकर ,
अकेली दृष्टि मेरी ,
लौट आती ,
एक भटकी राह
मन से है निकलती
मन को जाती ,
ग्रीष्म की इस साँझ में ,
बहने लगीं पुरवाइयां.
नेह के रंगों से ,
कितने चित्र थे
हमने सजाए ,
बावरा मन है अभी ,
उस बिम्ब को,
दृग में बसाये,
दोपहर की चिलचिलाती धूप में ,
बेकल, अलस अमराइयाँ.
waaaaaaaaaaaaaaaaaah
ReplyDeletebahut khub surat i hope v get more and more from u
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