Wednesday, January 12, 2011

aaj jab tum yaad aaye

आज जब
तुम याद आये ,
देर तक ,
बजती रहीं शहनाइयाँ

दूर तक जाकर ,
अकेली दृष्टि  मेरी ,
लौट आती ,
एक भटकी राह
मन  से है निकलती
मन को जाती ,
ग्रीष्म की इस साँझ में ,
बहने लगीं पुरवाइयां.

नेह के रंगों से ,
कितने चित्र थे
हमने सजाए ,
बावरा मन है अभी ,
उस बिम्ब को,
दृग में बसाये,
दोपहर की चिलचिलाती धूप में ,
बेकल, अलस अमराइयाँ.

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