दृष्टि की पुकार में ,
अनुराग का अनुबन्ध ,
नेह ने रचा है ,
आकुलता का छन्द ,
सांस -सांस में बसी,
इक कस्तूरी गंध,
मदिरा सी मादक है,
वो स्मित मन्द ,
आमंत्रण देते हैं,
प्रिय के स्कन्ध,
बहने दो प्रीति को ,
यूँ ही निर्बन्ध,
यौवन है वसुधा का,
निर्मल , स्वच्छंद,
कलियों ने मुक्त-हस्त,
बाँटा मकरन्द,
नील गगन बिखराए ,
अनुपम आनन्द,
मुक्त करो मन को,
है सदियों से बन्द.
अनुराग का अनुबन्ध ,
नेह ने रचा है ,
आकुलता का छन्द ,
सांस -सांस में बसी,
इक कस्तूरी गंध,
मदिरा सी मादक है,
वो स्मित मन्द ,
आमंत्रण देते हैं,
प्रिय के स्कन्ध,
बहने दो प्रीति को ,
यूँ ही निर्बन्ध,
यौवन है वसुधा का,
निर्मल , स्वच्छंद,
कलियों ने मुक्त-हस्त,
बाँटा मकरन्द,
नील गगन बिखराए ,
अनुपम आनन्द,
मुक्त करो मन को,
है सदियों से बन्द.