दूर...
असीम क्षितिज तक
उन्मुक्त विचरण करते पक्षी
कलरव करते विहग,
कितनी अनन्त है इनकी यात्रा
और कितना निरीह है इन्सान ,
उसकी यात्रा है ....
रोटी ..कपड़ा ,..मकान..
अच्छा ही किया ईश्वर ने
जो उसे पंख नहीं दिए
पंखो की जगह अधिक विकसित
मष्तिष्क दे दिया ..
ताकि वह इसका उपयोग करे ,
और बन्धनों में उलझा रहे ,
उम्र -ता -उम्र
इस यात्रा से उस यात्रा तक ...
bahut sundar kavitayen hai apki. badhai.....
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